Thursday, July 23, 2009


कर्म

नित्य प्रतिदिन

अँधेरा सुबह का

पीछा करता है।

हर काली रात का

एक सुबह से मिलन

सुनिश्चित है,

प्राकृतिक है।

फिर कैसी यह बेचैनी

और सोच

और अलगाव सा

ठहराव।

क्यों न लगें हम

सुकर्म में,

सत्कर्म में?

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