कर्म
नित्य प्रतिदिन
अँधेरा सुबह का
पीछा करता है।
हर काली रात का
एक सुबह से मिलन
सुनिश्चित है,
प्राकृतिक है।
फिर कैसी यह बेचैनी
और सोच
और अलगाव सा
ठहराव।
क्यों न लगें हम
सुकर्म में,
सत्कर्म में?
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